सुन्दरता सामन्जस्य मे होती है. सारे मानव समाज को सुन्दर बनाने की साधना का ही नाम साहित्य है.... जो जाति जितनी ही अधिक सौन्दर्य प्रेमी है, उसमे मनुष्यता उतनी ही अधिक होती है, किसी जाति के उत्कर्ष व अपकर्ष का पता उसके साहित्य से चलता है.---डा.हज़ारी प्रसाद द्विवेदी

सोमवार, 10 दिसंबर 2007

पत्थर तराश

वो तराशते हैं बेजान पत्थरों को इस तरह ।
कि जान पड़ जाये मुर्दों मे जिस तरह॥

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