सुन्दरता सामन्जस्य मे होती है. सारे मानव समाज को सुन्दर बनाने की साधना का ही नाम साहित्य है.... जो जाति जितनी ही अधिक सौन्दर्य प्रेमी है, उसमे मनुष्यता उतनी ही अधिक होती है, किसी जाति के उत्कर्ष व अपकर्ष का पता उसके साहित्य से चलता है.---डा.हज़ारी प्रसाद द्विवेदी

शनिवार, 29 दिसंबर 2007

जुदाई

तेरी जुदाई बेकरार किये जाती है,
दर्द -ए-दिल से जार जार किये जाती है।
आ जाती है तस्वीर हर पल तेरी सामने,
आंखों में नमी का आगाज किये जाती है॥

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
अभी तलाश मे हूं कि . . . . मैं कौन हूं ? ? ?