सुन्दरता सामन्जस्य मे होती है. सारे मानव समाज को सुन्दर बनाने की साधना का ही नाम साहित्य है.... जो जाति जितनी ही अधिक सौन्दर्य प्रेमी है, उसमे मनुष्यता उतनी ही अधिक होती है, किसी जाति के उत्कर्ष व अपकर्ष का पता उसके साहित्य से चलता है.---डा.हज़ारी प्रसाद द्विवेदी

शनिवार, 13 जून 2009

जहर

मै जहर हूं सीने से मत लगाओ, पछ्ताओगे .

            मै मोहब्बत का सागर हूं ये जान जाओगे  ..

मेरे जहर का असर खुद पे भी पाओगे .

            और तुम भी मोहब्बत के सागर हो जाओगे ....




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