सुन्दरता सामन्जस्य मे होती है. सारे मानव समाज को सुन्दर बनाने की साधना का ही नाम साहित्य है.... जो जाति जितनी ही अधिक सौन्दर्य प्रेमी है, उसमे मनुष्यता उतनी ही अधिक होती है, किसी जाति के उत्कर्ष व अपकर्ष का पता उसके साहित्य से चलता है.---डा.हज़ारी प्रसाद द्विवेदी

मंगलवार, 29 जून 2010

सम्भलते क्यूं हैं ?


लोग हर मोड पे रुक रुक के सम्भलते क्यूं हैं ।



इतना डरते हैं तो घर से निकलते क्यूं हैं ॥

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