सुन्दरता सामन्जस्य मे होती है. सारे मानव समाज को सुन्दर बनाने की साधना का ही नाम साहित्य है.... जो जाति जितनी ही अधिक सौन्दर्य प्रेमी है, उसमे मनुष्यता उतनी ही अधिक होती है, किसी जाति के उत्कर्ष व अपकर्ष का पता उसके साहित्य से चलता है.---डा.हज़ारी प्रसाद द्विवेदी

सोमवार, 26 जुलाई 2010

जुदाई

तेरी जुदाई बेकरार किये जाती है, 

दर्द-ए-दिल को ज़ार ज़ार किये जाती है । 

आ जाती है सामने तस्वीर हर पल तेरी, 

आखों में नमी का आगाज़ किये जाती है ॥

2 टिप्‍पणियां:

  1. aapki ye chhoti si kavita bahut kuch kaha jaati hai...........शब्द पुष्टिकरण hataa de

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  2. आपके सुझाव के लिये धन्यवाद.. शब्द पुष्टिकरण हटा दिया है.

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