सुन्दरता सामन्जस्य मे होती है. सारे मानव समाज को सुन्दर बनाने की साधना का ही नाम साहित्य है.... जो जाति जितनी ही अधिक सौन्दर्य प्रेमी है, उसमे मनुष्यता उतनी ही अधिक होती है, किसी जाति के उत्कर्ष व अपकर्ष का पता उसके साहित्य से चलता है.---डा.हज़ारी प्रसाद द्विवेदी

शनिवार, 31 जुलाई 2010

अदा

ये कैसी अदा ,ये कैसा सितम, जाने वो क्यूं दिल को तडपाता है । 

महफ़िल मे वो हमसे बात करे, और तन्हाइ मे शरमाता है ॥

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