सुन्दरता सामन्जस्य मे होती है. सारे मानव समाज को सुन्दर बनाने की साधना का ही नाम साहित्य है.... जो जाति जितनी ही अधिक सौन्दर्य प्रेमी है, उसमे मनुष्यता उतनी ही अधिक होती है, किसी जाति के उत्कर्ष व अपकर्ष का पता उसके साहित्य से चलता है.---डा.हज़ारी प्रसाद द्विवेदी

गुरुवार, 12 अगस्त 2010

ठूंठ

ठूंठ था मैं, मोहब्बत करना सिखा दिया तूने ।

                         जानवर था, इन्सान बना दिया तूने ॥ 

मस्ती में, बेफ़िक्री, मे जिया करता था । 

                          प्यार में पागल बना दिया तूने ॥

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