सुन्दरता सामन्जस्य मे होती है. सारे मानव समाज को सुन्दर बनाने की साधना का ही नाम साहित्य है.... जो जाति जितनी ही अधिक सौन्दर्य प्रेमी है, उसमे मनुष्यता उतनी ही अधिक होती है, किसी जाति के उत्कर्ष व अपकर्ष का पता उसके साहित्य से चलता है.---डा.हज़ारी प्रसाद द्विवेदी

सोमवार, 16 अगस्त 2010

तेरी मुस्कुराहट

शामिल नहीं है जिसमे तेरी मुस्कुराहटें,

वो जिन्दगी किसी जहन्नुम से कम नही ।

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अभी तलाश मे हूं कि . . . . मैं कौन हूं ? ? ?