सुन्दरता सामन्जस्य मे होती है. सारे मानव समाज को सुन्दर बनाने की साधना का ही नाम साहित्य है.... जो जाति जितनी ही अधिक सौन्दर्य प्रेमी है, उसमे मनुष्यता उतनी ही अधिक होती है, किसी जाति के उत्कर्ष व अपकर्ष का पता उसके साहित्य से चलता है.---डा.हज़ारी प्रसाद द्विवेदी

शुक्रवार, 27 अगस्त 2010

इन्कार

कर लो लाख इनकार मगर,

रंग लायेगी हमारी आशिकी भी एक दिन ।

हर गली में हमारे चरचे होंगे,

पतझड में भी बहार आयेगी एक दिन ॥

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