सुन्दरता सामन्जस्य मे होती है. सारे मानव समाज को सुन्दर बनाने की साधना का ही नाम साहित्य है.... जो जाति जितनी ही अधिक सौन्दर्य प्रेमी है, उसमे मनुष्यता उतनी ही अधिक होती है, किसी जाति के उत्कर्ष व अपकर्ष का पता उसके साहित्य से चलता है.---डा.हज़ारी प्रसाद द्विवेदी
शुक्रवार, 26 नवंबर 2010
तेरी याद
जब शाम हौले से ढलती है, रात की काली चादर बिछती है ।
फ़िज़ाओं में चांदनी बिखरती है, रश्मि तेरी याद आती है ॥
आंखें नींद से बोझिल होती हैं, रात गहराती चली जाती है ।
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