सुन्दरता सामन्जस्य मे होती है. सारे मानव समाज को सुन्दर बनाने की साधना का ही नाम साहित्य है.... जो जाति जितनी ही अधिक सौन्दर्य प्रेमी है, उसमे मनुष्यता उतनी ही अधिक होती है, किसी जाति के उत्कर्ष व अपकर्ष का पता उसके साहित्य से चलता है.---डा.हज़ारी प्रसाद द्विवेदी

गुरुवार, 10 जनवरी 2008

यादें

तेरी यादों के फूल दिल की बगिया को महका गए।
प्यार की खुशबू तो दे गए पर रातों की नींद उडा गए॥

जी चाहता है

तुम्हारी आंखों में डूबने को आज फिर जी चाहता है।
तुम्हारे लबों को चूमने को आज फिर जी चाहता है ॥
आज कही है इक बात मेरे दिल ने मुझसे।
के तुमपे मरने को आज फिर जी चाहता है ॥

सूरत

तुम्हारी मासूम सूरत ने ये क्या जादू कर दिया।
नज़र तो नज़र दिल को भी बेकाबू कर दिया॥

हुस्न

तेरे बेपनाह हुस्न को देखकर कुछ सोचता हूँ मैं ।
दर पे आता हूँ उम्मीदों से पर बैरंग लौटता हूँ मैं॥

इश्क

इश्क की दुनिया में हुस्न का बसेरा है।
तेरी हर मुस्कराहट मेरे लिए इक नया सवेरा है ॥

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अभी तलाश मे हूं कि . . . . मैं कौन हूं ? ? ?