सुन्दरता सामन्जस्य मे होती है. सारे मानव समाज को सुन्दर बनाने की साधना का ही नाम साहित्य है.... जो जाति जितनी ही अधिक सौन्दर्य प्रेमी है, उसमे मनुष्यता उतनी ही अधिक होती है, किसी जाति के उत्कर्ष व अपकर्ष का पता उसके साहित्य से चलता है.---डा.हज़ारी प्रसाद द्विवेदी

शुक्रवार, 26 नवंबर 2010

तेरी याद

जब शाम हौले से ढलती है,
रात की काली चादर बिछती है ।


फ़िज़ाओं में चांदनी बिखरती है,
रश्मि तेरी याद आती है ॥


आंखें नींद से बोझिल होती हैं,
रात गहराती चली जाती है ।


दिल मे फ़िर कसक उठती है,
रश्मि तेरी याद आती है ॥

शनिवार, 23 अक्तूबर 2010

नज़र

कभी सोचा ना था कि बात इस मुकाम तक आ जायेगी ।
तेरी खामोश नज़र हमारे दिल पर कयामत ढा जायेगी ॥

सोमवार, 18 अक्तूबर 2010

तिरछी नज़र

तेरी तिरछी नज़र का तीर ,ये क्या कर गया ।

पत्थर समझते थे,पिघला के मोम कर गया ॥

बुधवार, 13 अक्तूबर 2010

असर

बहुत खूब है ऐ इश्क तेरी फ़ितरत, हम मर रहे हैं और उनको खबर भी नही ।

मुडकर ना देखा उन्होने आज तलक, हमारी आहों में इतना असर भी नही ॥

रविवार, 10 अक्तूबर 2010

गम

गम तेरा ले लेंगे हम, खुशियां  अपनी तुझको दे जायेंगे ।

खून के घूंट पी लेंगे हम,दुनिया अपनी तुझको दे जायेंगे ।।

गुरुवार, 30 सितंबर 2010

मुस्कुराह्ट

मैने रोकना तो चाहा था,अपने इस दिल को लाख मगर ।

ये मुमकिन न था, कि तेरी मुस्कुराहट हो  जाये बेअसर ॥

शनिवार, 25 सितंबर 2010

तुम

तुमसे हो गई है मोहब्बत ये बात कैसे छुपायेंगे ।

जुबां को रोक लेंगे, फ़िजाओं को कैसे रोक पायेंगे ॥

सोमवार, 20 सितंबर 2010

गमों का प्याला

यूं तो रोने की आदत नहीं हमको, पर ये आंसू ना जाने क्यूं छलक आये ।

दिल का प्याला गमों से भर गया शायद, और ये आन्खों से ढलक आये ॥

बुधवार, 15 सितंबर 2010

संग तराश

वो तराशते हैं बेज़ान पत्थरों को इस तरह,

कि ज़ान पड जाये मुर्दों मे जिस तरह ॥

शुक्रवार, 10 सितंबर 2010

तुम्हारी सूरत

तुम्हारी सूरत  दिल-ओ-दिमाग पर युं छा गयी है ,

जैसे दिल के आसमां पे इश्क की बद्ली आ गयी है ।

रविवार, 5 सितंबर 2010

वक्त की दीवार

वक्त की दीवार पर नाम लिखने को प्यार की स्याही और दिल की कलम चाहिये ।
इंसा पे यकीन हो ,और दिल मे प्यार हो तो जीने को और क्या चाहिये ॥

शुक्रवार, 27 अगस्त 2010

इन्कार

कर लो लाख इनकार मगर,

रंग लायेगी हमारी आशिकी भी एक दिन ।

हर गली में हमारे चरचे होंगे,

पतझड में भी बहार आयेगी एक दिन ॥

बुधवार, 25 अगस्त 2010

अजनबी

ये बेजान चीजें, ये उनकी नुमाइश, ये गुन्चे, ये कलियां, ये तारे, हटा दो ।

जहां से गुज़रना है, उस अजनबी को,वहां मेरे दिल की धडकन बिछा दो ॥

शुक्रवार, 20 अगस्त 2010

परवाना

मिसाले परवाना तुम एक पल में न जलना सीखो ।

ता सहर शमा की मानिन्द पिघलना सीखो ॥

सोमवार, 16 अगस्त 2010

तेरी मुस्कुराहट

शामिल नहीं है जिसमे तेरी मुस्कुराहटें,

वो जिन्दगी किसी जहन्नुम से कम नही ।

गुरुवार, 12 अगस्त 2010

ठूंठ

ठूंठ था मैं, मोहब्बत करना सिखा दिया तूने ।

                         जानवर था, इन्सान बना दिया तूने ॥ 

मस्ती में, बेफ़िक्री, मे जिया करता था । 

                          प्यार में पागल बना दिया तूने ॥

सोमवार, 9 अगस्त 2010

गुरुवार, 5 अगस्त 2010

तडप

दिल तडपता है रूह बैचैन होती है, 

हर पल कमी तेरी मह्सूस होती है । 

दीदार की तमन्ना मे जिये जा रहा हूं,

 तेरी बेदर्दी की कसक होती है ॥

मंगलवार, 3 अगस्त 2010

दर्द

तूने मुझे दर्द के सिवा कुछ भी नही दिया है ।

मैने तुझे मुस्कुरा के देखा तो तूने मुंह फ़ेर लिया है ॥

सोमवार, 2 अगस्त 2010

मुस्कुराहट

रास्ते से गुजरते गुजरते जो तुमको मुस्कुराते देखा ।

यकीं न आया हमें, लगा कि कोई सपना देखा ॥

शनिवार, 31 जुलाई 2010

अदा

ये कैसी अदा ,ये कैसा सितम, जाने वो क्यूं दिल को तडपाता है । 

महफ़िल मे वो हमसे बात करे, और तन्हाइ मे शरमाता है ॥

गुरुवार, 29 जुलाई 2010

मलाल

जब भी तेरा खयाल आता है, 

मेरे खून मे उबाल स आता है । 

तुझे चाहकर भी खमोश हूं मै , 

इस बात पर मलाल आता है ॥

बुधवार, 28 जुलाई 2010

हुस्न

तेरे लाजवाब हुस्न को देखकर मेरा दिल बेगाना हो गया । 

तेरी जुल्फ़ों की वादियों मे फ़िर एक दीवाना खो गया ॥

मंगलवार, 27 जुलाई 2010

वहम

क्या क्या ख्याल-ओ-वहम निगाहों पे छा गये । 

जी धक से हो गया, ये सुना जब वो आ गये ॥

सोमवार, 26 जुलाई 2010

जुदाई

तेरी जुदाई बेकरार किये जाती है, 

दर्द-ए-दिल को ज़ार ज़ार किये जाती है । 

आ जाती है सामने तस्वीर हर पल तेरी, 

आखों में नमी का आगाज़ किये जाती है ॥

रविवार, 25 जुलाई 2010

यादें

यादों में तेरी खोकर, पागल सा हो गया हूं । 

तेरी निगाहों के तीर से, घायल सा हो गया हूं ॥ 

अब भी वक्त है ज़ालिम,संभाल ले मुझको । 

बजते बजते मै तो , टूटी पायल सा हो गया हूं ॥

शनिवार, 24 जुलाई 2010

दर्द

कब ठहरेगा दर्द-ए-दिल, कब रात बसर होगी । 

सुनते थे वो आएंगे, सुनते थे सहर होगी ॥

शुक्रवार, 23 जुलाई 2010

शाम

शाम होते ही चरागों को बुझा देता हुं ।

दिल ही काफ़ी है तेरी याद में जलने के लिये ॥

गुरुवार, 22 जुलाई 2010

बुधवार, 21 जुलाई 2010

जवानी

जवानी जा चुकी लेकिन,

         खलिश दर्दे मोहब्बत की । 

वहीं महसूस होती है, 

          जहां महसूस होती थी ॥

मंगलवार, 20 जुलाई 2010

जवानी

दिल कई धडकन जहां बेबाक हुआ करती है,

रंग मे डूबी हुइ हर रात हुआ करती है । 

नींद लगते ही ख्वाब गुलाबी आना, 

ये जवानी की शुरुआत हुआ करती है ॥


सोमवार, 19 जुलाई 2010

रातें

किस्मत मे ना थी ये दो रातें, 

एक प्यार की एक तन्हाई की ।

एक रात मे जीना आ जाता, 

एक रात मे मरना आ जाता ॥

रविवार, 18 जुलाई 2010

शनिवार, 17 जुलाई 2010

तिल

अब समझा मै तेरे रुख्सार पे तिल का मतलब । 

दौलत-ए-हुस्न पे दरबान बिठा रखा है ॥

शुक्रवार, 16 जुलाई 2010

महफ़िल

तेरा महफ़िल मे आना नज़ारों को रंगीन कर गया ।

और तेरा यूं जाना फ़िज़ाओं को गमगीन कर गया॥

गुरुवार, 15 जुलाई 2010

प्यार

तुम दिल से पुकारो, तो ये जमीं तुम्हारी ,ये आसमां तुम्हारा हो जायेगा।

गर इन्सान से, मोहब्बत का नाता रखो, तो ये जहां तुम्हारा हो जायेगा ॥

बुधवार, 14 जुलाई 2010

ज़माना

ज़माना दिल्लगी चाहे, तो आंसू पलकों मे पीले । 

ज़िन्दगी बरबाद ना कर,औरों के लिये जी ले ॥

मंगलवार, 13 जुलाई 2010

शायर

कुछ लोग हम पे हंसते हैं,क्युंकि हम शायर हैं ।

कुछ लोग हम पे मरते हैं,क्युंकि हम शायर हैं ।।

सोमवार, 12 जुलाई 2010

मोहब्बत

आन्खों की कोर से छ्लकती है मोहब्बत,

तिरछी चितवन से महकती है मोहब्बत।

अब और क्या क्या बयां करें हम भी,

तू सर से पांव तक है मोहब्बत ही मोहब्ब

रविवार, 11 जुलाई 2010

तन्हा

वहां क्यूं जाऊं मै कोइ जहां अपना नही लगता ।
तुम्हारे बज़्म में तो गैर भी तन्हा नही लगता ॥

शनिवार, 10 जुलाई 2010

एह्सास-ए-मोहब्बत

ये एह्सास-ए-मोहब्बत है जो तुम न समझ पाओगे । 

यूंकि समझने के लिये प्यार भरा दिल कहां से लाओगे ॥

शुक्रवार, 9 जुलाई 2010

हुस्न

हुस्न बेपर्दा हो रहा है कुछ इस तरह । 

गोया चान्द निकला बादलों से जिस तरह ॥

तबस्सुम

आखिर जब उनको मेरी वफ़ा पे एतबार आया । 

लब-ए-नाज़ुक पे हल्का सा तबस्सुम बार बार आया ॥

गुरुवार, 8 जुलाई 2010

अंदाज़

जिसे मै प्यार का अन्दाज़ समझ बैठा हूं । 

वो तबस्सुम वो तकल्लुफ़ तेरी आदत ही न हो ॥

बुधवार, 7 जुलाई 2010

मंगलवार, 6 जुलाई 2010

सोमवार, 5 जुलाई 2010

बिज़ली

होशोहवास पर मेरे बिजली सी गिर गई,
मस्ती भरी आन्खों से पिलाते चले गये ।
जो सांस आ रही है उसी का पयाम है,
बेताबियों को और बढाते चले गये ॥

रविवार, 4 जुलाई 2010

शमा

कौन देता है साथ गम की रात का । 

शमा भी अखिर तन्हा जलती है रात भर ॥

शनिवार, 3 जुलाई 2010

रोना

आज़ उनके बज़्म में तूफ़ान उठाकर उठे । 

इस तलक रोये कि उनको भी रुलाकर उठे ॥

शुक्रवार, 2 जुलाई 2010

असर


गज़ल में बन्दिश-ए-अलफ़ाज़ ही नही काफ़ी ।

ज़िगर का खून भी चाहिये असर के लिये ॥

हुस्न और नज़ाकत

खुदा जब हुस्न देता है तो नज़ाकत आ हि जाती है ।

कितना ही सम्भल के चलो कमर बल खा ही जाती है ॥

इन्तजार


कुछ रोज़ ये भी रंग रहा इन्तजार का । 

आंखें उठ गईं जिधर, बस उधर ही देखते रहे॥

इन्तज़ार


न कोई वादा, न कोई यकीं न कोई उम्मीद । 

मगर हमें तो तेरा इन्तज़ार करना था ॥

गुरुवार, 1 जुलाई 2010

हीरे

हीरे तो कम नहीं हैं मेरे शहर मे मगर ।

आन्खें परखने वालों की कमज़ोर हो गई ॥

बुधवार, 30 जून 2010

तुझ पर

दिल तडपता है , आंसू बहते हैं। 

तेरी जुदाई का गम हर पल सह्ते हैं ॥

बेदर्द है तु, जानते हैं हम फ़िर भी । 

इस दुनिया में सिर्फ़ तुमपर ही मरते हैं ॥

आ भी जाओ

आ भी जाओ आसमां के जीनों से । 

तुम्हें गवां के मैने खुद को गंवाया है ॥

दिल

जल के दिल खाक हुआ, आंखों से रोया ना गया ।

जख्म कुछ ऐसे हुए, फ़ूलों पे सोया ना गया ॥

जख्म


कोशिशें जब भी संवरने की मैं करता हूं ।

वक्त चेहरे पे कोई जख्म लगा जाता है ॥


दर्द


मैने लफ़्जों को बरतने का हुनर सीख लिया है ।

मेरे हर दर्द को अब शेर कहा जाता है ॥

बेवफ़ा


मै अभी किस तरह उन्हे बेवफ़ा कहूं ।

मन्ज़िलों की बात है रास्तों में क्या कहूं

मुर्दा


खुदा के फ़ज़ल से आशिक मिज़ाज़ हूं मै भी ।

ये और बात है कि मुल्ला सा दिखाई देता हूं ॥

मंगलवार, 29 जून 2010

तौबा



वो कौन है जिसे तौबा की मिली फ़ुरसत ।


हमें तो गुनाह भी करने को ज़िन्दगी कम है ॥

मुस्कुराने का अन्दाज़



सबब खुला है उनके मुंह छुपाने का ।


चुरा ना ले कोई अन्दाज़ मुस्कुराने का ॥

सम्भलते क्यूं हैं ?


लोग हर मोड पे रुक रुक के सम्भलते क्यूं हैं ।



इतना डरते हैं तो घर से निकलते क्यूं हैं ॥

कातिल


कितने कम नसीब हम निकले,
खुशी के कागज मे भी गम निकले ।


इक उम्र तलाशा मुज़रिम को ,
मगर कातिल तो मेरे सनम निकले ॥

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अभी तलाश मे हूं कि . . . . मैं कौन हूं ? ? ?