सुन्दरता सामन्जस्य मे होती है. सारे मानव समाज को सुन्दर बनाने की साधना का ही नाम साहित्य है.... जो जाति जितनी ही अधिक सौन्दर्य प्रेमी है, उसमे मनुष्यता उतनी ही अधिक होती है, किसी जाति के उत्कर्ष व अपकर्ष का पता उसके साहित्य से चलता है.---डा.हज़ारी प्रसाद द्विवेदी

बुधवार, 15 जुलाई 2009

नजरें मिलाने के बाद

क्या हुआ उनसे नजरें मिलाने के बाद.



हमने उफ़ तक न की तीर खाने के बाद..



फिर ना ठहरे वो दिल उडाने के बाद.



उठ के बस चल दिये मुस्कुराने के बाद..




तराशना

एक पत्थर कि भी तकदीर बदल सकती है.



शर्त ये है के सलीके से तराशा जाये..




मौत


जब से सुना है मरने का नाम जिन्दगी है .


सर पर कफ़न लपेटे कातिल को ढून्ढ्ते हैं ..


रविवार, 5 जुलाई 2009

मय

कौन है जिसने मय नही पी, कौन झूठी कसम उठाता है ।

मयकदे से जो बच निकलता है , तेरी आँखों में डूब जाता है ॥

भूलने वाले

भूलने वाले को शायद याद वादा गया

मुझको देखा मुस्कुराया ख़ुद-बखुद शर्मा गया

मंगलवार, 23 जून 2009

फ़िदा


खुदा किसी को किसी पे फ़िदा ना करे.


गर फ़िदा करे तो फ़िर कयामत तक जुदा ना करे ..


मुस्कुराहट


मै तो बेहोश यूं हि हो जाता
क्या जरूरत थी मुस्कुराने की



संव्ररना

अच्छी सूरत को संवरने कि जरूरत क्या है .


सादगी भी तो कयामत कि अदा होती है ..


शनिवार, 13 जून 2009

अन्दाज जीने का

अन्दाज जीने का कुछ बदल के देखो,

            कुछ ना कुछ नया पा ही जाओगे .

लड्खडाओगे माना दो कदम पर,

            जम के चलना सीख ही जाओगे .


जहर

मै जहर हूं सीने से मत लगाओ, पछ्ताओगे .

            मै मोहब्बत का सागर हूं ये जान जाओगे  ..

मेरे जहर का असर खुद पे भी पाओगे .

            और तुम भी मोहब्बत के सागर हो जाओगे ....




गुरुवार, 11 जून 2009

धमाका

ये मत सोचो कि जमाने में जोशोहिम्मत नाकाफी है ।
ये तो दबा बारूद है धमाके को एक चिंगारी काफी है ॥

मंगलवार, 9 जून 2009

दीदार

जान-ए-बहार ऑंखें तरस गई हैं तेरे दीदार को ।
एक झलक तो दिखला जा इस दिल-ए-बीमार को ।

तुम

रंग-ए-महफिल हो तुम या हुस्न की किताब हो तुम।
जो भी हो खुदा की कसम लाज़वाब हो तुम ।

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अभी तलाश मे हूं कि . . . . मैं कौन हूं ? ? ?