सुन्दरता सामन्जस्य मे होती है. सारे मानव समाज को सुन्दर बनाने की साधना का ही नाम साहित्य है.... जो जाति जितनी ही अधिक सौन्दर्य प्रेमी है, उसमे मनुष्यता उतनी ही अधिक होती है, किसी जाति के उत्कर्ष व अपकर्ष का पता उसके साहित्य से चलता है.---डा.हज़ारी प्रसाद द्विवेदी

शनिवार, 23 अक्तूबर 2010

नज़र

कभी सोचा ना था कि बात इस मुकाम तक आ जायेगी ।
तेरी खामोश नज़र हमारे दिल पर कयामत ढा जायेगी ॥

सोमवार, 18 अक्तूबर 2010

तिरछी नज़र

तेरी तिरछी नज़र का तीर ,ये क्या कर गया ।

पत्थर समझते थे,पिघला के मोम कर गया ॥

बुधवार, 13 अक्तूबर 2010

असर

बहुत खूब है ऐ इश्क तेरी फ़ितरत, हम मर रहे हैं और उनको खबर भी नही ।

मुडकर ना देखा उन्होने आज तलक, हमारी आहों में इतना असर भी नही ॥

रविवार, 10 अक्तूबर 2010

गम

गम तेरा ले लेंगे हम, खुशियां  अपनी तुझको दे जायेंगे ।

खून के घूंट पी लेंगे हम,दुनिया अपनी तुझको दे जायेंगे ।।

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अभी तलाश मे हूं कि . . . . मैं कौन हूं ? ? ?