सुन्दरता सामन्जस्य मे होती है. सारे मानव समाज को सुन्दर बनाने की साधना का ही नाम साहित्य है.... जो जाति जितनी ही अधिक सौन्दर्य प्रेमी है, उसमे मनुष्यता उतनी ही अधिक होती है, किसी जाति के उत्कर्ष व अपकर्ष का पता उसके साहित्य से चलता है.---डा.हज़ारी प्रसाद द्विवेदी

गुरुवार, 30 सितंबर 2010

मुस्कुराह्ट

मैने रोकना तो चाहा था,अपने इस दिल को लाख मगर ।

ये मुमकिन न था, कि तेरी मुस्कुराहट हो  जाये बेअसर ॥

शनिवार, 25 सितंबर 2010

तुम

तुमसे हो गई है मोहब्बत ये बात कैसे छुपायेंगे ।

जुबां को रोक लेंगे, फ़िजाओं को कैसे रोक पायेंगे ॥

सोमवार, 20 सितंबर 2010

गमों का प्याला

यूं तो रोने की आदत नहीं हमको, पर ये आंसू ना जाने क्यूं छलक आये ।

दिल का प्याला गमों से भर गया शायद, और ये आन्खों से ढलक आये ॥

बुधवार, 15 सितंबर 2010

संग तराश

वो तराशते हैं बेज़ान पत्थरों को इस तरह,

कि ज़ान पड जाये मुर्दों मे जिस तरह ॥

शुक्रवार, 10 सितंबर 2010

तुम्हारी सूरत

तुम्हारी सूरत  दिल-ओ-दिमाग पर युं छा गयी है ,

जैसे दिल के आसमां पे इश्क की बद्ली आ गयी है ।

रविवार, 5 सितंबर 2010

वक्त की दीवार

वक्त की दीवार पर नाम लिखने को प्यार की स्याही और दिल की कलम चाहिये ।
इंसा पे यकीन हो ,और दिल मे प्यार हो तो जीने को और क्या चाहिये ॥

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अभी तलाश मे हूं कि . . . . मैं कौन हूं ? ? ?