सुन्दरता सामन्जस्य मे होती है. सारे मानव समाज को सुन्दर बनाने की साधना का ही नाम साहित्य है.... जो जाति जितनी ही अधिक सौन्दर्य प्रेमी है, उसमे मनुष्यता उतनी ही अधिक होती है, किसी जाति के उत्कर्ष व अपकर्ष का पता उसके साहित्य से चलता है.---डा.हज़ारी प्रसाद द्विवेदी

शुक्रवार, 27 अगस्त 2010

इन्कार

कर लो लाख इनकार मगर,

रंग लायेगी हमारी आशिकी भी एक दिन ।

हर गली में हमारे चरचे होंगे,

पतझड में भी बहार आयेगी एक दिन ॥

बुधवार, 25 अगस्त 2010

अजनबी

ये बेजान चीजें, ये उनकी नुमाइश, ये गुन्चे, ये कलियां, ये तारे, हटा दो ।

जहां से गुज़रना है, उस अजनबी को,वहां मेरे दिल की धडकन बिछा दो ॥

शुक्रवार, 20 अगस्त 2010

परवाना

मिसाले परवाना तुम एक पल में न जलना सीखो ।

ता सहर शमा की मानिन्द पिघलना सीखो ॥

सोमवार, 16 अगस्त 2010

तेरी मुस्कुराहट

शामिल नहीं है जिसमे तेरी मुस्कुराहटें,

वो जिन्दगी किसी जहन्नुम से कम नही ।

गुरुवार, 12 अगस्त 2010

ठूंठ

ठूंठ था मैं, मोहब्बत करना सिखा दिया तूने ।

                         जानवर था, इन्सान बना दिया तूने ॥ 

मस्ती में, बेफ़िक्री, मे जिया करता था । 

                          प्यार में पागल बना दिया तूने ॥

सोमवार, 9 अगस्त 2010

गुरुवार, 5 अगस्त 2010

तडप

दिल तडपता है रूह बैचैन होती है, 

हर पल कमी तेरी मह्सूस होती है । 

दीदार की तमन्ना मे जिये जा रहा हूं,

 तेरी बेदर्दी की कसक होती है ॥

मंगलवार, 3 अगस्त 2010

दर्द

तूने मुझे दर्द के सिवा कुछ भी नही दिया है ।

मैने तुझे मुस्कुरा के देखा तो तूने मुंह फ़ेर लिया है ॥

सोमवार, 2 अगस्त 2010

मुस्कुराहट

रास्ते से गुजरते गुजरते जो तुमको मुस्कुराते देखा ।

यकीं न आया हमें, लगा कि कोई सपना देखा ॥

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अभी तलाश मे हूं कि . . . . मैं कौन हूं ? ? ?