सुन्दरता सामन्जस्य मे होती है. सारे मानव समाज को सुन्दर बनाने की साधना का ही नाम साहित्य है.... जो जाति जितनी ही अधिक सौन्दर्य प्रेमी है, उसमे मनुष्यता उतनी ही अधिक होती है, किसी जाति के उत्कर्ष व अपकर्ष का पता उसके साहित्य से चलता है.---डा.हज़ारी प्रसाद द्विवेदी

शुक्रवार, 2 जुलाई 2010

हुस्न और नज़ाकत

खुदा जब हुस्न देता है तो नज़ाकत आ हि जाती है ।

कितना ही सम्भल के चलो कमर बल खा ही जाती है ॥

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