सुन्दरता सामन्जस्य मे होती है. सारे मानव समाज को सुन्दर बनाने की साधना का ही नाम साहित्य है.... जो जाति जितनी ही अधिक सौन्दर्य प्रेमी है, उसमे मनुष्यता उतनी ही अधिक होती है, किसी जाति के उत्कर्ष व अपकर्ष का पता उसके साहित्य से चलता है.---डा.हज़ारी प्रसाद द्विवेदी

सोमवार, 12 जुलाई 2010

मोहब्बत

आन्खों की कोर से छ्लकती है मोहब्बत,

तिरछी चितवन से महकती है मोहब्बत।

अब और क्या क्या बयां करें हम भी,

तू सर से पांव तक है मोहब्बत ही मोहब्ब

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