सुन्दरता सामन्जस्य मे होती है. सारे मानव समाज को सुन्दर बनाने की साधना का ही नाम साहित्य है.... जो जाति जितनी ही अधिक सौन्दर्य प्रेमी है, उसमे मनुष्यता उतनी ही अधिक होती है, किसी जाति के उत्कर्ष व अपकर्ष का पता उसके साहित्य से चलता है.---डा.हज़ारी प्रसाद द्विवेदी
गुरुवार, 10 जनवरी 2008
जी चाहता है
तुम्हारी आंखों में डूबने को आज फिर जी चाहता है। तुम्हारे लबों को चूमने को आज फिर जी चाहता है ॥ आज कही है इक बात मेरे दिल ने मुझसे। के तुमपे मरने को आज फिर जी चाहता है ॥
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