सुन्दरता सामन्जस्य मे होती है. सारे मानव समाज को सुन्दर बनाने की साधना का ही नाम साहित्य है.... जो जाति जितनी ही अधिक सौन्दर्य प्रेमी है, उसमे मनुष्यता उतनी ही अधिक होती है, किसी जाति के उत्कर्ष व अपकर्ष का पता उसके साहित्य से चलता है.---डा.हज़ारी प्रसाद द्विवेदी
रविवार, 5 जुलाई 2009
मय
कौन है जिसने मय नही पी, कौन झूठी कसम उठाता है ।
मयकदे से जो बच निकलता है , तेरी आँखों में डूब जाता है ॥
गज़ब की प्रस्तुति
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