ठूंठ था मैं मोहब्बत करना सिक्हा दिया तूने ।
जानवर था इंसान बना दिया तूने॥
मस्ती में बेफिक्री में जिया करता था।
प्यार में पागल बना दिया तूने॥
सुन्दरता सामन्जस्य मे होती है. सारे मानव समाज को सुन्दर बनाने की साधना का ही नाम साहित्य है.... जो जाति जितनी ही अधिक सौन्दर्य प्रेमी है, उसमे मनुष्यता उतनी ही अधिक होती है, किसी जाति के उत्कर्ष व अपकर्ष का पता उसके साहित्य से चलता है.---डा.हज़ारी प्रसाद द्विवेदी
शनिवार, 29 दिसंबर 2007
बुधवार, 19 दिसंबर 2007
शुक्रवार, 14 दिसंबर 2007
अश्क
अश्क पीने कि आदत नहीं हमको,
उमड़ते हैं तो खुलकर बहा दिया करतें हैं।
रो रो के जीने कि आदत नहीं हमको,
गम बढ़ते हैं तो मुस्कुरा दिया करते हैं॥
माना जीने का सलीका नहीं हमको,
हम तो बस मस्ती में जिया करते हैं।
जरूरत नहीं मयखानों कि 'अनिल',
हम तो जाम आंखों से पिया करते हैं॥
इश्किया गुफ्तगू के लिए बागों कि,
तन्हाई की, इजहार कि जरूरत क्या है।
हम तो सरे बाज़ार, भरी महफिल मे भी,
आंखों से चुपके से बात किया करते हैं॥
लोग कहते हैं इश्क के लिए हुस्न कि,
राहों मे बिछ जाना भी जरूरी है।
हमने तो ये देखा है कि हुस्नवाले,
बेकरारी से इंतज़ार किया करते हैं॥
आहें भरते हैं, अश्क बहाते हैं,
दिल को जार जार किया करते हैं।
इश्क लगे तो दिल तडपता है,
बार बार इसका इजहार किया करते हैं॥
उमड़ते हैं तो खुलकर बहा दिया करतें हैं।
रो रो के जीने कि आदत नहीं हमको,
गम बढ़ते हैं तो मुस्कुरा दिया करते हैं॥
माना जीने का सलीका नहीं हमको,
हम तो बस मस्ती में जिया करते हैं।
जरूरत नहीं मयखानों कि 'अनिल',
हम तो जाम आंखों से पिया करते हैं॥
इश्किया गुफ्तगू के लिए बागों कि,
तन्हाई की, इजहार कि जरूरत क्या है।
हम तो सरे बाज़ार, भरी महफिल मे भी,
आंखों से चुपके से बात किया करते हैं॥
लोग कहते हैं इश्क के लिए हुस्न कि,
राहों मे बिछ जाना भी जरूरी है।
हमने तो ये देखा है कि हुस्नवाले,
बेकरारी से इंतज़ार किया करते हैं॥
आहें भरते हैं, अश्क बहाते हैं,
दिल को जार जार किया करते हैं।
इश्क लगे तो दिल तडपता है,
बार बार इसका इजहार किया करते हैं॥
मुकाम
एक मुकाम खोजता हूँ ,
रास्तों के बीच में ।
मंजिल मेरी खो गयी है,
चाहतों के बीच में ॥
रास्तों के बीच में ।
मंजिल मेरी खो गयी है,
चाहतों के बीच में ॥
गुरुवार, 13 दिसंबर 2007
अश्क
अश्क पीने कि आदत नहीं 'अनिल' मुझको,
खून के घूँट पिए जाता हूँ।
मर मर के जीने कि आदत नहीं मुझको,
मजबूरी मे जिए जाता हूँ॥
खून के घूँट पिए जाता हूँ।
मर मर के जीने कि आदत नहीं मुझको,
मजबूरी मे जिए जाता हूँ॥
याद
न छेड तू पुराने जख्मों को, के इनमे खून अभी बाकी है।
कह तो दिया के भुला चूका हूँ ,पर याद अभी बाक़ी है॥
कह तो दिया के भुला चूका हूँ ,पर याद अभी बाक़ी है॥
दर्द
मेरे सीने मे जिगर भी है, बाखुदा जिगर मे दर्द भी है।
अफ़सोस तो ये है कि, किसी को इसका गुमान भी नहीं है ॥
अफ़सोस तो ये है कि, किसी को इसका गुमान भी नहीं है ॥
सोमवार, 10 दिसंबर 2007
गुरुवार, 6 दिसंबर 2007
अश्क
अश्क पीने की आदत नहीं हमको,
उमड़ते हैं तो बहा दिया करते हैं।
रो रो के जीने की आदत नहीं हमको,
गम बढें तो मुस्कुरा दिया करते हैं॥
उमड़ते हैं तो बहा दिया करते हैं।
रो रो के जीने की आदत नहीं हमको,
गम बढें तो मुस्कुरा दिया करते हैं॥
शनिवार, 1 दिसंबर 2007
शुक्रवार, 30 नवंबर 2007
शाम के साये
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