सुन्दरता सामन्जस्य मे होती है. सारे मानव समाज को सुन्दर बनाने की साधना का ही नाम साहित्य है.... जो जाति जितनी ही अधिक सौन्दर्य प्रेमी है, उसमे मनुष्यता उतनी ही अधिक होती है, किसी जाति के उत्कर्ष व अपकर्ष का पता उसके साहित्य से चलता है.---डा.हज़ारी प्रसाद द्विवेदी
गुरुवार, 13 दिसंबर 2007
अश्क
अश्क पीने कि आदत नहीं 'अनिल' मुझको, खून के घूँट पिए जाता हूँ।
मर मर के जीने कि आदत नहीं मुझको, मजबूरी मे जिए जाता हूँ॥
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें