अश्क पीने कि आदत नहीं हमको,
उमड़ते हैं तो खुलकर बहा दिया करतें हैं।
रो रो के जीने कि आदत नहीं हमको,
गम बढ़ते हैं तो मुस्कुरा दिया करते हैं॥
माना जीने का सलीका नहीं हमको,
हम तो बस मस्ती में जिया करते हैं।
जरूरत नहीं मयखानों कि 'अनिल',
हम तो जाम आंखों से पिया करते हैं॥
इश्किया गुफ्तगू के लिए बागों कि,
तन्हाई की, इजहार कि जरूरत क्या है।
हम तो सरे बाज़ार, भरी महफिल मे भी,
आंखों से चुपके से बात किया करते हैं॥
लोग कहते हैं इश्क के लिए हुस्न कि,
राहों मे बिछ जाना भी जरूरी है।
हमने तो ये देखा है कि हुस्नवाले,
बेकरारी से इंतज़ार किया करते हैं॥
आहें भरते हैं, अश्क बहाते हैं,
दिल को जार जार किया करते हैं।
इश्क लगे तो दिल तडपता है,
बार बार इसका इजहार किया करते हैं॥
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