सुन्दरता सामन्जस्य मे होती है. सारे मानव समाज को सुन्दर बनाने की साधना का ही नाम साहित्य है.... जो जाति जितनी ही अधिक सौन्दर्य प्रेमी है, उसमे मनुष्यता उतनी ही अधिक होती है, किसी जाति के उत्कर्ष व अपकर्ष का पता उसके साहित्य से चलता है.---डा.हज़ारी प्रसाद द्विवेदी
सोमवार, 5 जुलाई 2010
बिज़ली
होशोहवास पर मेरे बिजली सी गिर गई, मस्ती भरी आन्खों से पिलाते चले गये । जो सांस आ रही है उसी का पयाम है, बेताबियों को और बढाते चले गये ॥
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